सहर Poetry (page 44)

अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस ने

अातिश बहावलपुरी

ज़िंदगी गुज़री मिरी ख़ुश्क शजर की सूरत

अातिश बहावलपुरी

तिरी दोस्ती का कमाल था मुझे ख़ौफ़ था न मलाल था

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

मानूस हो गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम

आसी रामनगरी

धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो

आसी रामनगरी

किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ख़बर तो दूर अमीन-ए-ख़बर नहीं आए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

जिस की न कोई रात हो ऐसी सहर मिले

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ये इंतिज़ार सहर का था या तुम्हारा था

आनिस मुईन

ये क़र्ज़ तो मेरा है चुकाएगा कोई और

आनिस मुईन

वो मेरे हाल पे रोया भी मुस्कुराया भी

आनिस मुईन

मिलन की साअ'त को इस तरह से अमर किया है

आनिस मुईन

बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है

आनिस मुईन

सलोनी सर्दियों की नज़्म

आमिर सुहैल

मुझे सिरे से पकड़ कर उधेड़ देती है

आलोक श्रीवास्तव

हुस्न काफ़िर था अदा क़ातिल थी बातें सेहर थीं

आल-ए-अहमद सूरूर

वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला

आल-ए-अहमद सूरूर

सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर

आल-ए-अहमद सूरूर

सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था

आल-ए-अहमद सूरूर

आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी

आल-ए-अहमद सूरूर

वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई

आग़ा अकबराबादी

दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और

आग़ा अकबराबादी

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