सहर Poetry (page 23)

मिरी हयात अगर मुज़्दा-ए-सहर भी नहीं

हनीफ़ फ़ौक़

चश्म-ए-पुर-नम अभी मरहून-ए-असर हो न सकी

हनीफ़ फ़ौक़

शब-ए-दराज़ का है क़िस्सा मुख़्तसर 'कैफ़ी'

हनीफ़ कैफ़ी

बना के तोड़ती है दाएरे चराग़ की लौ

हनीफ़ कैफ़ी

अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी

हनीफ़ अख़गर

सेहन-ए-आइंदा को इम्कान से धोए जाएँ

हम्माद नियाज़ी

असर देखा दुआ जब रात-भर की

हामिदुल्लाह अफ़सर

बस उसी का सफ़र-ए-शब में तलबगार है क्या

हामिदी काश्मीरी

साहिर

हमीदा शाहीन

रात

हमीदा शाहीन

हर शख़्स अपने आप में सहमा हुआ सा है

हामिद सरोश

सवाल दिल का शाम-ए-ग़म को और उदास कर गया

हमीद नसीम

ख़ुद अपने आप से हम बे-ख़बर से गुज़रे हैं

हमीद नागपुरी

उस के करम से है न तुम्हारी नज़र से है

हमीद अलमास

फिरता रहता हूँ मैं हर लहज़ा पस-ए-जाम-ए-शराब

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

मरता भला है ज़ब्त की ताक़त अगर न हो

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

कुछ बात ही थी ऐसी कि थामे जिगर गए

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं

हैरत इलाहाबादी

इर्तिकाब-ए-जुर्म शर की बात है

हैदर अली जाफ़री

क़द-ए-सनम सा अगर आफ़रीदा होना था

हैदर अली आतिश

काम हिम्मत से जवाँ मर्द अगर लेता है

हैदर अली आतिश

जौहर नहीं हमारे हैं सय्याद पर खुले

हैदर अली आतिश

इस के कूचे में मसीहा हर सहर जाता रहा

हैदर अली आतिश

बुलबुल गुलों से देख के तुझ को बिगड़ गया

हैदर अली आतिश

हर शे'र ग़ज़ल का कह रहा है

हाफ़िज़ लुधियानवी

सितम की तेग़ ये कहती है सर न ऊँचा कर

हफ़ीज़ मेरठी

गुदाज़-ए-दिल से मिला सोज़िश-ए-जिगर से मिला

हफ़ीज़ मेरठी

मुँह मिरा एक एक तकता था

हफ़ीज़ जौनपुरी

जुनूँ के जोश में फिरते हैं मारे मारे अब

हफ़ीज़ जौनपुरी

इधर होते होते उधर होते होते

हफ़ीज़ जौनपुरी

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