सहर Poetry (page 25)

तेरा ख़ुलूस-ए-दिल तो महल्ल-ए-नज़र नहीं

गोपाल मित्तल

क़दमों से मेरे गर्द-ए-सफ़र कौन ले गया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ज़मानों को उड़ानें बर्क़ को रफ़्तार देता था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

क्या आ के जहाँ में कर गए हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आज आईने में जो कुछ भी नज़र आता है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सूरज को क्या पता है किधर धूप चाहिए

ग़यास मतीन

जज़ीरे हों कि वो सहरा हों ख़्वाब होना है

ग़यास मतीन

ग़ुरूर-ए-नाज़ दिखा तुझ में कितना जौहर है

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

अब तो ख़ुद से भी कुछ ऐसा है बशर का रिश्ता

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

मुखड़ा वो बुत जिधर करेगा

ग़मगीन देहलवी

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज

ग़ालिब

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ग़ालिब

वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को

ग़ालिब

सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

ग़ालिब

गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज

ग़ालिब

दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई

ग़ालिब

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

ग़ालिब

लम्हा गुज़र गया है कि अर्सा गुज़र गया

गौतम राजऋषि

शाइरी बात नहीं गर्म-ए-सुख़न होने की

गौहर होशियारपुरी

समन-बरों से चमन दौलत-ए-नुमू माँगे

गौहर होशियारपुरी

अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई

गणेश बिहारी तर्ज़

सर किया ज़ुल्फ़ की शब को तो सहर तक पहुँचे

ग़फ़्फ़ार बाबर

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