सहर Poetry (page 24)

दीवाने हुए सहरा में फिरे ये हाल तुम्हारे ग़म ने किया

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिल को इसी सबब से है इज़्तिराब शायद

हफ़ीज़ जौनपुरी

कृष्ण कन्हैया

हफ़ीज़ जालंधरी

वो अब्र जो मय-ख़्वार की तुर्बत पे न बरसे

हफ़ीज़ जालंधरी

उन को जिगर की जुस्तुजू उन की नज़र को क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

इश्क़ में छेड़ हुई दीदा-ए-तर से पहले

हफ़ीज़ जालंधरी

ये दिलकशी कहाँ मिरी शाम-ओ-सहर में थी

हफ़ीज़ होशियारपुरी

नज़र से हद्द-ए-नज़र तक तमाम तारीकी

हफ़ीज़ होशियारपुरी

कहाँ कहाँ न तसव्वुर ने दाम फैलाए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

बे-चारगी-ए-हसरत-ए-दीदार देखना

हफ़ीज़ होशियारपुरी

शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं

हबीब जालिब

ख़ुदा हमारा है

हबीब जालिब

तू रंग है ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग

हबीब जालिब

महताब-सिफ़त लोग यहाँ ख़ाक-बसर हैं

हबीब जालिब

लोग गीतों का नगर याद आया

हबीब जालिब

जागने वालो ता-ब-सहर ख़ामोश रहो

हबीब जालिब

हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में

हबीब जालिब

दयार-ए-'दाग़'-ओ-'बेख़ुद' शहर-ए-देहली छोड़ कर तुझ को

हबीब जालिब

चूर था ज़ख़्मों से दिल ज़ख़्मी जिगर भी हो गया

हबीब जालिब

है आठ पहर तू जल्वा-नुमा तिमसाल-ए-नज़र है परतव-ए-रुख़

हबीब मूसवी

बढ़ा दी इक नज़र में तू ने क्या तौक़ीर पत्थर की

हबीब मूसवी

जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है

गुलज़ार बुख़ारी

जब भी आँखों में अश्क भर आए

गुलज़ार

हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए

गुलनार आफ़रीन

आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में

गुलनार आफ़रीन

तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख

गुहर खैराबादी

दर्द-ए-दिल के साथ क्या मेरे मसीहा कर दिया

गुहर खैराबादी

सुब्ह-ए-काज़िब

गोपाल मित्तल

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