समुद्र Poetry (page 2)

कल रात बहुत ज़ोर था साहिल की हवा में

ज़ाहिद मसूद

सितारे चुप हैं कि नग़्मा-सरा समुंदर है

ज़ाहिद फ़ारानी

आईने मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गए

ज़हीर रहमती

वो अक्सर बातों बातों में अग़्यार से पूछा करते हैं

ज़हीर काश्मीरी

तलब आसूदगी की अर्सा-ए-दुनिया में रखते हैं

ज़हीर काश्मीरी

किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया

ज़हीर काश्मीरी

आरिज़-ए-शम्अ' पे नींद आ गई परवानों को

ज़हीर काश्मीरी

हर्फ़-ए-तदबीर न था हर्फ़-ए-दिलासा रौशन

ज़फ़र मुरादाबादी

हो चुकी हिजरत तो फिर क्या फ़र्ज़ है घर देखना

ज़फ़र कलीम

यूँ भी होता है कि यक दम कोई अच्छा लग जाए

ज़फ़र इक़बाल

ये ज़मीन आसमान का मुमकिन

ज़फ़र इक़बाल

ये नहीं कहता कि दोबारा वही आवाज़ दे

ज़फ़र इक़बाल

यक़ीं की ख़ाक उड़ाते गुमाँ बनाते हैं

ज़फ़र इक़बाल

कोई किनाया कहीं और बात करते हुए

ज़फ़र इक़बाल

हद हो चक्की है शर्म-ए-शकेबाई ख़त्म हो

ज़फ़र इक़बाल

बदला ये लिया हसरत-ए-इज़हार से हम ने

ज़फ़र इक़बाल

अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है

ज़फ़र इक़बाल

दर्द बहता है दरिया के सीने में पानी नहीं

ज़फर इमाम

सर में सौदा भी वही कूचा-ए-क़ातिल भी वही

ज़फ़र अनवर

इन की नज़रों में न बन जाए तमाशा चेहरा

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

आ के जब ख़्वाब तुम्हारे ने कहा बिस्मिल्लाह

ज़फ़र अज्मी

जो डुबोएगी न पहुँचाएगी साहिल पे हमें

यासमीन हमीद

कोई पूछे मिरे महताब से मेरे सितारों से

यासमीन हमीद

दौलत-ए-दर्द समेटो कि बिखरने को है

यासमीन हमीद

तूफ़ाँ की ज़द पे अपना सफ़ीना जब आ गया

याक़ूब उस्मानी

बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ

यगाना चंगेज़ी

टीन का डिब्बा

वज़ीर आग़ा

जो रंग-ए-इश्क़ से फ़ारिग़ हो उस को दिल नहीं कहते

वासिफ़ देहलवी

वो जिस की जुस्तुजू-ए-दीद में पथरा गईं आँखें

वासिफ़ देहलवी

हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते

वासिफ़ देहलवी

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