काग़ज़ पे उगल रहा है नफ़रत
कम-ज़र्फ़ अदीब हो गया है
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
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दिल के शजर को ख़ून से गुलनार देख कर
तन्हाई के शो'लों पे मचलने के लिए था
अश्कों में क़लम डुबो रहा है
क्यूँ जल-बुझे कहीं तो गिरफ़्तार बोलते
बेचैन हूँ ख़ूँनाबा-फ़िशानी में घिरा हूँ
साए जो संग-ए-राह थे रस्ते से हट गए
ओढ़ी रिदा-ए-दर्द भी हालात की तरह
लहजे का रंग लफ़्ज़ की ख़ुश्बू भी देख ले
कूफ़े के क़रीब हो गया है
सीने की आग आतिश-ए-महशर हो जिस तरह
एहसास में शदीद तलातुम के बावजूद