एहसास में शदीद तलातुम के बावजूद
चुप हूँ मुझे सुकून मयस्सर हो जिस तरह
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बेचैन हूँ ख़ूँनाबा-फ़िशानी में घिरा हूँ
ओढ़ी रिदा-ए-दर्द भी हालात की तरह
तन्हाई के शो'लों पे मचलने के लिए था
दिल के शजर को ख़ून से गुलनार देख कर
कूफ़े के क़रीब हो गया है
इतने दुखी हैं हम को मसर्रत भी ग़म बने
साए जो संग-ए-राह थे रस्ते से हट गए
सीने की आग आतिश-ए-महशर हो जिस तरह
अश्कों में क़लम डुबो रहा है
चिंगारियाँ न डाल मिरे दिल के घाव में
काग़ज़ पे उगल रहा है नफ़रत