चिंगारियाँ न डाल मिरे दिल के घाव में
मैं ख़ुद ही जल रहा हूँ ग़मों के अलाव में
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सीने की आग आतिश-ए-महशर हो जिस तरह
इतने दुखी हैं हम को मसर्रत भी ग़म बने
काग़ज़ पे उगल रहा है नफ़रत
एहसास में शदीद तलातुम के बावजूद
यादों की गूँज ज़ेहन से बाहर निकालिए
तन्हाई के शो'लों पे मचलने के लिए था
दिल के शजर को ख़ून से गुलनार देख कर
साए जो संग-ए-राह थे रस्ते से हट गए
लहजे का रंग लफ़्ज़ की ख़ुश्बू भी देख ले
अब क्या गिला करें कि मुक़द्दर में कुछ न था
ओढ़ी रिदा-ए-दर्द भी हालात की तरह