गिरफ्तार Poetry (page 2)

फ़र्द को अस्र की रफ़्तार लिए फिरती है

सय्यद हामिद

तुझ को पाने के लिए ख़ाक-ए-तमन्ना हो जाऊँ

सुल्तान अख़्तर

ख़ाना-बर्बाद हुए बे-दर-ओ-दीवार रहे

सुल्तान अख़्तर

हर सुब्ह अपने घर में उसी वक़्त जागना

सुहैल अहमद ज़ैदी

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

दुनिया से वफ़ा कर के सिला ढूँढ रहे हैं

सुदर्शन फ़ाकिर

कैसे फाँदेगा बाग़ की दीवार

सिराज लखनवी

अश्क-ए-हसरत में क्यूँ लहू है अभी

सिराज लखनवी

तिरी ज़ुल्फ़ ज़ुन्नार का तार है

सिराज औरंगाबादी

मुझ पर ऐ महरम-ए-जाँ पर्दा-ए-असरार कूँ खोल

सिराज औरंगाबादी

ख़ूब बूझा हूँ मैं उस यार कूँ कुइ क्या जाने

सिराज औरंगाबादी

जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का

सिराज औरंगाबादी

है दिल में ख़याल-ए-गुल-ए-रुख़्सार किसी का

सिराज औरंगाबादी

अव्वल सीं दिल मिरा जो गिरफ़्तार था सो है

सिराज औरंगाबादी

अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा

सिराज औरंगाबादी

शहर-ए-एहसास में ज़ख़्मों के ख़रीदार बहुत

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

किस रोज़ इलाही वो मिरा यार मिलेगा

शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान

रिंद-ए-ख़राब-हाल को ज़ाहिद न छेड़ तू

ज़ौक़

था बंद वो दर फिर भी मैं सौ बार गया था

शौक़ क़िदवाई

मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन

शकील बदायुनी

ज़लज़ला

शकील बदायुनी

कहाँ है आ जा

शकील बदायुनी

निगाह-ए-नाज़ का इक वार कर के छोड़ दिया

शकील बदायुनी

धूप से बर-सर-ए-पैकार किया है मैं ने

शकील आज़मी

राह में ग़म-ज़दा-ए-इश्क़ को क्या टोको हो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

दिल देखते ही उस को गिरफ़्तार हो गया

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

किस सितमगर का गुनाहगार हूँ अल्लाह अल्लाह

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कौन दिल है कि तिरे दर्द में बीमार नहीं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

एक मुद्दत से तलबगार हूँ किन का इन का

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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