बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहा
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई
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बताओ तुम से कहाँ राब्ता किया जाए
हम अपने-आप में रहते हैं दम में दम जैसे
दीवार याद आ गई दर याद आ गया
और तो ख़ैर क्या रह गया
मैं ने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है
सुनी है चाप बहुत वक़्त के गुज़रने की
ज़िंदगी हम से चाहती क्या है
कुछ कहना चाहते थे कि ख़ामोश हो गए
लोग जीते हैं किस तरह 'अजमल'
ग़म सभी दिल से रुख़्सत हुए
शाम अपनी बे-मज़ा जाती है रोज़
पेश जो आया सर-ए-साहिल शब बतलाया