कुछ कहना चाहते थे कि ख़ामोश हो गए
दस्तार याद आ गई सर याद आ गया
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बुझ गया रात वो सितारा भी
लोग जीते हैं किस तरह 'अजमल'
शाम अपनी बे-मज़ा जाती है रोज़
किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है
रह गया दिल में इक दर्द सा
तेरे सिवा किसी की तमन्ना करूँगा मैं
बदल जाएँगे ये दिन रात 'अजमल'
दुश्वार है इस अंजुमन-आरा को समझना
ज़मीं पर आसमाँ कब तक रहेगा
ठहर गया है दिल का जाना