लोग जीते हैं किस तरह 'अजमल'
हम से होता नहीं गुज़ारा भी
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तेरे सिवा किसी की तमन्ना करूँगा मैं
घूम-फिर कर इसी कूचे की तरफ़ आएँगे
दुश्वार है इस अंजुमन-आरा को समझना
शाम अपनी बे-मज़ा जाती है रोज़
जो अश्क बरसा रहे हैं साहिब
जो कल हैरान थे उन को परेशाँ कर के छोड़ूँगा
हम अपने-आप में रहते हैं दम में दम जैसे
बदल जाएँगे ये दिन रात 'अजमल'
उस ने पूछा था क्या हाल है
बताओ तुम से कहाँ राब्ता किया जाए
ये भी तय है कि जो बोएँगे वो काटेंगे यहाँ
ज़मीं पर आसमाँ कब तक रहेगा