मैं भरी सड़कों पे भी बे-चाप चलने लग गया
घर में सोए लोग मेरे ज़ेहन पर यूँ छा गए
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धुँद
पेश हर अहद को इक तेग़ का इम्काँ क्यूँ है
मैं अपने वक़्त में अपनी रिदा में रहता हूँ
सारा दिन बे-कार बैठे शाम को घर आ गए
ऐ शाएर! तेरा दर्द बड़ा ऐ शाएर! तेरी सोच बड़ी
ज़रा हटे तो वो मेहवर से टूट कर ही रहे
तलाश-ए-आख़र
बोसीदा ख़दशात का मलबा दूर कहीं दफ़नाओ
अपने नाख़ुन अपने चेहरे पर ख़राशें दे गए
पानी में भी प्यास का इतना ज़हर मिला है
मैं खोए जाता हूँ तन्हाइयों की वुसअत में
किसी पे बार-ए-दिगर भी निगाह कर न सके