मैं खोए जाता हूँ तन्हाइयों की वुसअत में
दर-ए-ख़याल दर-ए-ला-मकाँ है या कुछ और
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उसी पेड़ के नीचे दफ़्न भी होना होगा
कभी जो नूर का मज़हर रहा है
ऐ शाएर! तेरा दर्द बड़ा ऐ शाएर! तेरी सोच बड़ी
मैं अपने वक़्त में अपनी रिदा में रहता हूँ
बोसीदा ख़दशात का मलबा दूर कहीं दफ़नाओ
पानी में भी प्यास का इतना ज़हर मिला है
फ़रेब-ए-माह-ओ-अंजुम से निकल जाएँ तो अच्छा है
इक सदा की सूरत हम इस हवा में ज़िंदा हैं
कश्फ़
किसी पे बार-ए-दिगर भी निगाह कर न सके
ज़रा हटे तो वो मेहवर से टूट कर ही रहे