उसी पेड़ के नीचे दफ़्न भी होना होगा
जिस की जड़ पर मैं ने अपना नाम लिखा है
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मैं अपने वक़्त में अपनी रिदा में रहता हूँ
कभी सर पे चढ़े कभी सर से गुज़रे कभी पाँव आन गिरे दरिया
अँधेरी बस्तियाँ रौशन मनारे डूब जाएँगे
इक सदा की सूरत हम इस हवा में ज़िंदा हैं
पानी में भी प्यास का इतना ज़हर मिला है
ज़रा हटे तो वो मेहवर से टूट कर ही रहे
किसी पे बार-ए-दिगर भी निगाह कर न सके
ग़ुबार-ए-नूर है या कहकशाँ है या कुछ और
बोसीदा ख़दशात का मलबा दूर कहीं दफ़नाओ