घोर-अँधेरे सहराओं में
जब मैं भटका
इक टीले पर चढ़ कर चीख़ा
ख़ुदा-या!!
इक सकते के ब'अद जवाबन
सत्तर बार
अपनी ही आवाज़ सुनाई दी मुझ को
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Anwar Masood
Javed Akhtar
Habib Jalib
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इक सदा की सूरत हम इस हवा में ज़िंदा हैं
जो ख़ुद को पाएँ तो फिर दूसरा तलाश करें
कश्फ़
धुँद
ज़रा हटे तो वो मेहवर से टूट कर ही रहे
कभी सर पे चढ़े कभी सर से गुज़रे कभी पाँव आन गिरे दरिया
देखने में लगती थी भीगती सिमटती रात
कभी जो नूर का मज़हर रहा है
मैं लौह-ए-अर्ज़ पर नाज़िल हुआ सहीफ़ा हूँ
अपना आप नहीं है सब कुछ अपने आप से निकलो
ग़ुबार-ए-नूर है या कहकशाँ है या कुछ और
बोसीदा ख़दशात का मलबा दूर कहीं दफ़नाओ