तू है किस मंज़िल में तेरा बोल खाँ है दिल का ठार

तू है किस मंज़िल में तेरा बोल खाँ है दिल का ठार

दम तिरा आता है खाँ सूँ बोल खाँ जाता है भार

दम के तईं बूझा सो कहते इस के तईं इंसान है

नहिं तो सूरत आदमी सीरत में है मिस्ल-ए-हिमार

मैं कहता सो कौन है और तू समझता है किसे

क्यूँ अबस मैं तू में पड़ कर बे-अबस होता है ख़्वार

राहबर है कौन तेरा बोल तू किस का फ़क़ीर

फ़क़्र का क्या हासिला समझा मुझे मत हो गंवार

आशिक़ाँ के बज़्म में इक रंग हो ऐ बुल-हवस

मत कहा बुलबुल नमन चौंडा फुला कर ताजदार

बहर के ग़व्वास से मत बहस कर ऐ ख़ाम-तब्अ

नहिं गया है उम्र में अपने तू दरिया के कनार

कज-बहस आता है करने जंग जब उश्शाक़ सूँ

ज्यूँ कि तैर-ए-हफ़्त-रंगी हो गया आ कर शिकार

पूछता आया हूँ जो कुछ स्वाल का मेरे जवाब

थरथराता है अबस सीमाब नमने बे-क़रार

ता कहे लग ज्वाब तुझ पर फ़क़्र का लुक़्मा हराम

बज़्म-ए-रिंदाँ सूँ निकल जा जल्द-तर हो कर फ़रार

शोर और ग़ौग़ा अबस करता है क्यूँ रंग कर लिबास

मुँह उठा जाता है ज्यूँ बे-क़ैद शुत्र-ए-बे-महार

ऐ 'अलीमुल्लाह' न कर कज-बहस सूँ स्वाल ओ जवाब

हासिला तरफ़ैन नहिं होता ब-जुज़ ग़ौग़ा पुकार

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