अता अस्लाफ़ का जज़्ब-ए-दरूँ कर
शरीक-ए-ओ-ए-ज़ुमरा-ए-ला-यहज़नूँ
ख़िरद की गुत्थियाँ सुलझा चुका मैं
मिरे मौला मुझे साहिब-ए-जुनूँ कर
Gulzar
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अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
मोती समझ के शान-ए-करीमी ने चुन लिए
ख़ुदाई एहतिमाम-ए-ख़ुश्क-ओ-तर है
निकल जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में
शुऊर ओ होश ओ ख़िरद का मोआमला है अजीब
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
वो कल के ग़म ओ ऐश पे कुछ हक़ नहीं रखता
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
हिमाला
कभी आवारा ओ बे-ख़ानुमाँ इश्क़