तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
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हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
कभी आवारा ओ बे-ख़ानुमाँ इश्क़
सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
हज़रात-ए-इंसाँ
नाला-ए-फ़िराक़
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात
ज़माम-ए-कार अगर मज़दूर के हाथों में हो फिर क्या
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
इबलीस की मजलिस-ए-शूरा