अजीब लुत्फ़ था नादानियों के आलम में
समझ में आईं तो बातों का वो मज़ा भी गया
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पलकों के सितारे भी उड़ा ले गई 'अनवर'
दुनिया भी अजब क़ाफ़िला-ए-तिश्ना-लबाँ है
जाने किस रंग से रूठेगी तबीअत उस की
दर्द बढ़ता ही रहे ऐसी दवा दे जाओ
आस्तीनों की चमक ने हमें मारा 'अनवर'
ताज़ा ख़बर
उर्दू से हो क्यूँ बेज़ार इंग्लिश से क्यूँ इतना प्यार
क्यूँ किसी और को दुख दर्द सुनाऊँ अपने
मैं अपने दुश्मनों का किस क़दर मम्नून हूँ 'अनवर'
वहाँ ज़ेर-ए-बहस आते ख़त-ओ-ख़ाल ओ ख़ू-ए-ख़ूबाँ
रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
कैसी कैसी आयतें मस्तूर हैं नुक़्ते के बीच