ऐ दिल-ए-नादाँ किसी का रूठना मत याद कर
आन टपकेगा कोई आँसू भी इस झगड़े के बीच
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उजड़ा सा वो नगर कि हड़प्पा है जिस का नाम
जो हँसना हँसाना होता है
यही तो दोस्तो ले दे के मेरा बिज़नेस है
मेरी क़िस्मत कि वो अब हैं मिरे ग़म-ख़्वारों में
क्यूँ किसी और को दुख दर्द सुनाऊँ अपने
आइना देख ज़रा क्या मैं ग़लत कहता हूँ
दुनिया भी अजब क़ाफ़िला-ए-तिश्ना-लबाँ है
उस हसीं के ख़याल में रहना
जो चोट भी लगी है वो पहली से बढ़ के थी
साथ उस के कोई मंज़र कोई पस-ए-मंज़र न हो
मैं अपने दुश्मनों का किस क़दर मम्नून हूँ 'अनवर'
मैं जुर्म-ए-ख़मोशी की सफ़ाई नहीं देता