मैं अपने दुश्मनों का किस क़दर मम्नून हूँ 'अनवर'
कि उन के शर से क्या क्या ख़ैर के पहलू निकलते हैं
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आँखें भी हैं रस्ता भी चराग़ों की ज़िया भी
मैं देख भी न सका मेरे गिर्द क्या गया था
ताज़ा ख़बर
जुदा होगी कसक दिल से न उस की
नज़दीक की ऐनक से उसे कैसे मैं ढूँडूँ
दर्द बढ़ता ही रहे ऐसी दवा दे जाओ
दिल सुलगता है तिरे सर्द रवय्ये से मिरा
भूले से हो गई है अगरचे ये उस से बात
जौहर ओ जवाहिर
रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
वहाँ ज़ेर-ए-बहस आते ख़त-ओ-ख़ाल ओ ख़ू-ए-ख़ूबाँ
मैं ने 'अनवर' इस लिए बाँधी कलाई पर घड़ी