मैं ने 'अनवर' इस लिए बाँधी कलाई पर घड़ी
वक़्त पूछेंगे कई मज़दूर भी रस्ते के बीच
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'अनवर' मिरी नज़र को ये किस की नज़र लगी
बे-हिर्स-ओ-ग़रज़ क़र्ज़ अदा कीजिए अपना
अगले दिन कुछ ऐसे होंगे
जुदा होगी कसक दिल से न उस की
दरमियाँ गर न तिरा वादा-ए-फ़र्दा होता
डूबे हुए तारों पे मैं क्या अश्क बहाता
कभी हो गया मयस्सर न हुआ कभी मयस्सर
कैसी कैसी आयतें मस्तूर हैं नुक़्ते के बीच
जो बारिशों में जले तुंद आँधियों में जले
पलकों के सितारे भी उड़ा ले गई 'अनवर'
जौहर ओ जवाहिर