पलकों के सितारे भी उड़ा ले गई 'अनवर'
वो दर्द की आँधी की सर-ए-शाम चली थी
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उसे तो पास-ए-ख़ुलूस-ए-वफ़ा ज़रा भी नहीं
हाँ मुझे उर्दू है पंजाबी से भी बढ़ कर अज़ीज़
आँखें भी हैं रस्ता भी चराग़ों की ज़िया भी
बख़िया तो उस से एक भी सीधा नहीं लगा
दर्द बढ़ता ही रहे ऐसी दवा दे जाओ
दफ़अतन 'अनवर' ख़याल आया है आज उस मुर्ग़ का
मैं अपने दुश्मनों का किस क़दर मम्नून हूँ 'अनवर'
वहाँ ज़ेर-ए-बहस आते ख़त-ओ-ख़ाल ओ ख़ू-ए-ख़ूबाँ
जौहर ओ जवाहिर
दर्द ओ दरमाँ
अब कहाँ और किसी चीज़ की जा रक्खी है
मुझे ख़ुद से भी खटका सा लगा था