नज़दीक की ऐनक से उसे कैसे मैं ढूँडूँ
जो दूर की ऐनक है कहीं दूर पड़ी है
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इधर से लिया कुछ उधर से लिया
जो चोट भी लगी है वो पहली से बढ़ के थी
बस यूँही इक वहम सा है वाक़िआ ऐसा नहीं
कब तलक यूँ धूप छाँव का तमाशा देखना
दरमियाँ गर न तिरा वादा-ए-फ़र्दा होता
थुरू-प्रॉपर चैनल
कब ज़िया-बार तिरा चेहरा-ए-ज़ेबा होगा
मुझे ख़ुद से भी खटका सा लगा था
शिकवा-ए-गर्दिश-ए-हालात लिए फिरता है
दुआ
सर-दर्द में गोली ये बड़ी ज़ूद-असर है
लुत्फ़-ए-नज़्ज़रा है ए दोस्त इसी के दम से