जो हँसना हँसाना होता है
रोने को छुपाना होता है
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ताज़ा ख़बर
दुनिया भी अजब क़ाफ़िला-ए-तिश्ना-लबाँ है
आइना देख ज़रा क्या मैं ग़लत कहता हूँ
बख़िया तो उस से एक भी सीधा नहीं लगा
मैं देख भी न सका मेरे गिर्द क्या गया था
शिकवा-ए-गर्दिश-ए-हालात लिए फिरता है
वहाँ ज़ेर-ए-बहस आते ख़त-ओ-ख़ाल ओ ख़ू-ए-ख़ूबाँ
उन के बग़ैर फ़स्ल-ए-बहाराँ भी बर्गरीज़
साथ उस के कोई मंज़र कोई पस-ए-मंज़र न हो
मैं जुर्म-ए-ख़मोशी की सफ़ाई नहीं देता
तय हो गया है मसअला जब इंतिसाब का
इशारतों की वो शर्हें वो तज्ज़िया भी गया