जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती
तो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती
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ज़माने के झमेलों से मुझे क्या
ये तन्हाई ये उज़्लत ऐ दिल ऐ दिल
हमेशा हात में रहते हैं फूल उन के लिए
कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं
मैं बज़्म-ए-तसव्वुर में उसे लाए हुए था
मरने वाला ख़ुद रूठा था
बहरूप नहीं भरा है मैं ने
'शुऊर' तुम ने ख़ुदा जाने क्या किया होगा
उन से तन्हाई में बात होती रही
सच है उम्र भर किस का कौन साथ देता है
पियो कि मा-हसल-ए-होश किस ने देखा है
नहीं मिलते 'शुऊर' आँसू बहाते