जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती
तो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
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Habib Jalib
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Wasi Shah
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तिरे होते जो जचती ही नहीं थी
जो हम-कलाम हो हम से उसी के होते हैं
मुस्कुराए बग़ैर भी वो होंट
ज़बाँ ज़बाँ पे है एलान-ए-तर्क-ए-तम्बाकू
ये ख़ुद को देखते रहने की है जो ख़ू मुझ में
मरने वाला ख़ुद रूठा था
बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है
सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
कभी रोता था उस को याद कर के
कट चुकी थी ये नज़र सब से बहुत दिन पहले
बहुत इरादा किया कोई काम करने का
निज़ाम-ए-ज़र में किसी और काम का क्या हो