सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह
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मुझे ये जुस्तुजू क्यूँ हो कि क्या हूँ और किया था मैं
ये तन्हाई ये उज़्लत ऐ दिल ऐ दिल
मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक
जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती
पियो कि मा-हसल-ए-होश किस ने देखा है
ज़िंदगी की ज़रूरतों का यहाँ
सभी ज़िंदगी के मज़े लूटते हैं
हमेशा हात में रहते हैं फूल उन के लिए
और न दर-ब-दर फिरा और न आज़मा मुझे
इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़
वो मुझ से रूठ न जाती तो और क्या करती
फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था