सभी ज़िंदगी के मज़े लूटते हैं
न आया हमें ये हुनर ज़िंदगी भर
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2416) Peoples Rate This
तेरी सोहबत में बैठा हूँ
जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती
था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को
किसी ग़रीब को ज़ख़्मी करें कि क़त्ल करें
वो रंग रंग के छींटे पड़े कि उस के ब'अद
हो गए दिन जिन्हें भुलाए हुए
टूटा तिलिस्म-ए-वक़्त तो क्या देखता हूँ मैं
इस में क्या शक है कि आवारा हूँ मैं
ख़त्म हर अच्छा बुरा हो जाएगा
तिरे होते जो जचती ही नहीं थी
'शुऊर' सिर्फ़ इरादे से कुछ नहीं होता
पियो कि मा-हसल-ए-होश किस ने देखा है