निज़ाम-ए-ज़र में किसी और काम का क्या हो
बस आदमी है कमाने का और खाने का
Habib Jalib
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Gulzar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Anwar Masood
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1026) Peoples Rate This
फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था
हवस बला की मोहब्बत हमें बला की है
वो मुझ से रूठ न जाती तो और क्या करती
ठहर सकती है कहाँ उस रुख़-ए-ताबाँ पे नज़र
बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है
मैं बज़्म-ए-तसव्वुर में उसे लाए हुए था
काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए
टूटा तिलिस्म-ए-वक़्त तो क्या देखता हूँ मैं
इश्क़ तो हर शख़्स करता है 'शुऊर'
जो जल उठी है शबिस्ताँ में याद सी क्या है
ख़त्म हर अच्छा बुरा हो जाएगा
कहाँ है शैख़ को सुध-बुध मज़ीद पीने की