ज़िंदगी की ज़रूरतों का यहाँ
हसरतों में शुमार होता है
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1154) Peoples Rate This
जो हम-कलाम हो हम से उसी के होते हैं
था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को
बहुत इरादा किया कोई काम करने का
गो कठिन है तय करना उम्र का सफ़र तन्हा
दोस्त कहता हूँ तुम्हें शाएर नहीं कहता 'शुऊर'
कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं
बहरूप नहीं भरा है मैं ने
मैं ख़ाक हूँ आब हूँ हवा हूँ
मैं बज़्म-ए-तसव्वुर में उसे लाए हुए था
उबूर कर न सके हम हदें ही ऐसी थीं
पियो कि मा-हसल-ए-होश किस ने देखा है
रही रात उन से मुलाक़ात कम