कभी रोता था उस को याद कर के
अब अक्सर बे-सबब रोने लगा हूँ
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हो गए दिन जिन्हें भुलाए हुए
मुस्कुरा कर देख लेते हो मुझे
दोस्त कहता हूँ तुम्हें शाएर नहीं कहता 'शुऊर'
'शुऊर' सिर्फ़ इरादे से कुछ नहीं होता
कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं
जो सुनता हूँ कहूँगा मैं जो कहता हूँ सुनूँगा मैं
इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़
उस बज़्म में क्या कोई सुने राय हमारी
बहुत इरादा किया कोई काम करने का
आदमी के लिए रोना है बड़ी बात 'शुऊर'
बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है
जो हम-कलाम हो हम से उसी के होते हैं