आदमी के लिए रोना है बड़ी बात 'शुऊर'
हँस तो सकते हैं सब इंसान हँसी में क्या है
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तेरी आस पे जीता था मैं वो भी ख़त्म हुई
चले आया करो मेरी तरफ़ भी!
ये मत पूछो कि कैसा आदमी हूँ
तिरे होते जो जचती ही नहीं थी
ज़बाँ ज़बाँ पे है एलान-ए-तर्क-ए-तम्बाकू
किसी ग़रीब को ज़ख़्मी करें कि क़त्ल करें
बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है
मैं ख़ाक हूँ आब हूँ हवा हूँ
यादों के बाग़ से वो हरा-पन नहीं गया
तेरी सोहबत में बैठा हूँ
मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक
सभी ज़िंदगी के मज़े लूटते हैं