चले आया करो मेरी तरफ़ भी!
मोहब्बत करने वाला आदमी हूँ
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मरने वाला ख़ुद रूठा था
क्या बे-मुरव्वती का शिकवा गिला किसी से
अगरचे आइना-ए-दिल में है क़याम उस का
न सह सकूँगा ग़म-ए-ज़ात गो अकेला मैं
हो गए दिन जिन्हें भुलाए हुए
फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ
और न दर-ब-दर फिरा और न आज़मा मुझे
गो कठिन है तय करना उम्र का सफ़र तन्हा
काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए
था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को
लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो