कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए
दिगर-गूँ हैं मिरे हालात जब से तुम नहीं आए
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उन से तन्हाई में बात होती रही
इस में क्या शक है कि आवारा हूँ मैं
जो हम-कलाम हो हम से उसी के होते हैं
ठहर सकती है कहाँ उस रुख़-ए-ताबाँ पे नज़र
गो मुझे एहसास-ए-तन्हाई रहा शिद्दत के साथ
सामाँ तो बेहद है दिल में
न सह सकूँगा ग़म-ए-ज़ात गो अकेला मैं
तेरी सोहबत में बैठा हूँ
नहीं ख़स्ता-हाली पे ना-मुतमइन हम
ख़्वाह दिल से मुझे न चाहे वो
मैं ख़ाक हूँ आब हूँ हवा हूँ
मुस्कुराए बग़ैर भी वो होंट