ठहर सकती है कहाँ उस रुख़-ए-ताबाँ पे नज़र
देख सकता है उसे आदमी बंद आँखों से
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जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती
ख़त्म हर अच्छा बुरा हो जाएगा
यक़ीनन सर छुपाने की ग़रज़ से
काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए
किस क़दर बद-नामियाँ हैं मेरे साथ
बहुत इरादा किया कोई काम करने का
'शुऊर' तुम ने ख़ुदा जाने क्या किया होगा
ये तन्हाई ये उज़्लत ऐ दिल ऐ दिल
मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक
रही रात उन से मुलाक़ात कम
न सह सकूँगा ग़म-ए-ज़ात गो अकेला मैं