मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक
मुझे हवा से बचाए रखो सवेरे तक
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Gulzar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1013) Peoples Rate This
आदमी बन के मिरा आदमियों में रहना
मरने वाला ख़ुद रूठा था
'शुऊर' सिर्फ़ इरादे से कुछ नहीं होता
ज़हर की चुटकी ही मिल जाए बराए दर्द-ए-दिल
शक नहीं है हमें उस बुत के ख़ुदा होने में
कभी रोता था उस को याद कर के
मैं बज़्म-ए-तसव्वुर में उसे लाए हुए था
हो गए दिन जिन्हें भुलाए हुए
था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को
बहुत इरादा किया कोई काम करने का
ये ख़ुद को देखते रहने की है जो ख़ू मुझ में
ये मत पूछो कि कैसा आदमी हूँ