मेरे घर के तमाम दरवाज़े
तुम से करते हैं प्यार आ जाओ
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ज़माने के झमेलों से मुझे क्या
हम बुलाते वो तशरीफ़ लाते रहे
वो रंग रंग के छींटे पड़े कि उस के ब'अद
सुलैमान-ए-सुख़न तो ख़ैर क्या हूँ
इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
गो कठिन है तय करना उम्र का सफ़र तन्हा
मरने वाला ख़ुद रूठा था
फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था
उन की सूरत हमें आई थी पसंद आँखों से
सामाँ तो बेहद है दिल में
अगरचे आइना-ए-दिल में है क़याम उस का