किस क़दर बद-नामियाँ हैं मेरे साथ
क्या बताऊँ किस क़दर तन्हा हूँ मैं
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फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था
ज़हर की चुटकी ही मिल जाए बराए दर्द-ए-दिल
कुछ दिन तो कर तआ'वुन ऐ ख़ुश-सिफ़ात मुझ से
उबूर कर न सके हम हदें ही ऐसी थीं
दोस्त कहता हूँ तुम्हें शाएर नहीं कहता 'शुऊर'
जो सुनता हूँ कहूँगा मैं जो कहता हूँ सुनूँगा मैं
उन से तन्हाई में बात होती रही
वो रंग रंग के छींटे पड़े कि उस के ब'अद
ये ख़ुद को देखते रहने की है जो ख़ू मुझ में
जो जल उठी है शबिस्ताँ में याद सी क्या है
कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं
आदमी बन के मिरा आदमियों में रहना