दिल में सौ तीर तराज़ू हुए तब जा के खुला
इस क़दर सहल न था जाँ से गुज़रना मेरा
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(888) Peoples Rate This
दिल इक नई दुनिया-ए-मआनी से मिला है
फूल महकेंगे यूँही चाँद यूँही चमकेगा
यहीं कहीं कोई आवाज़ दे रहा था मुझे
खुल कर तो वो मुझ से कभी मिलता ही नहीं है
वो हो न सका अपना तो हम हो गए उस के
इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा
गिरती है तो गिर जाए ये दीवार-ए-सुकूँ भी
तलाश अपनी ख़ुद अपने वजूद को खो कर
कहा किस ने मुसलसल काम करने के लिए है
मैं अपनी प्यास में खोया रहा ख़बर न हुई
दिल की जागीर में मेरा भी कोई हिस्सा रख
ज़ूमिंग