लफ़्ज़ों में हर इक रंज समोने का क़रीना
उस आँख में ठहरे हुए पानी से मिला है
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दिल अजनबी देस में लगा है
कौन हैं वो जिन्हें आफ़ाक़ की वुसअत कम है
उस आँख न उस दिल से निकाले हुए हम हैं
तेरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है
खुल कर तो वो मुझ से कभी मिलता ही नहीं है
इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा
दिल इक नई दुनिया-ए-मआनी से मिला है
तुम्हें मनाने का मुझ को ख़याल क्या आए
फिर याद उसे करने की फ़ुर्सत निकल आई
कहा किस ने मुसलसल काम करने के लिए है
जो ख़्वाब की दहलीज़ तलक भी नहीं आया