खुल कर तो वो मुझ से कभी मिलता ही नहीं है
और उस से बिछड़ जाने का इम्कान है यूँ भी
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दिल की जागीर में मेरा भी कोई हिस्सा रख
कौन हैं वो जिन्हें आफ़ाक़ की वुसअत कम है
दिल में सौ तीर तराज़ू हुए तब जा के खुला
हंगाम-ए-शब-ओ-रोज़ में उलझा हुआ क्यूँ हूँ
तेरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है
तलाश अपनी ख़ुद अपने वजूद को खो कर
मैं अपनी प्यास में खोया रहा ख़बर न हुई
इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा
उस आँख न उस दिल से निकाले हुए हम हैं
दिन भर के झमेलों से बचा लाया था ख़ुद को
तुम्हें मनाने का मुझ को ख़याल क्या आए
दिल अजनबी देस में लगा है