तलाश अपनी ख़ुद अपने वजूद को खो कर
ये कार-ए-इश्क़ है इस में लगा तो मैं भी हूँ
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यहीं कहीं कोई आवाज़ दे रहा था मुझे
गिरती है तो गिर जाए ये दीवार-ए-सुकूँ भी
तुम्हें मनाने का मुझ को ख़याल क्या आए
ज़रा ज़रा ही सही आश्ना तो मैं भी हूँ
मैं अपनी प्यास में खोया रहा ख़बर न हुई
दिल अजनबी देस में लगा है
कौन हैं वो जिन्हें आफ़ाक़ की वुसअत कम है
लफ़्ज़ों में हर इक रंज समोने का क़रीना
हंगाम-ए-शब-ओ-रोज़ में उलझा हुआ क्यूँ हूँ
उस आँख न उस दिल से निकाले हुए हम हैं
कहा किस ने मुसलसल काम करने के लिए है