तुम्हें मनाने का मुझ को ख़याल क्या आए
कि अपने आप से रूठा हुआ तो मैं भी हूँ
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दिल की जागीर में मेरा भी कोई हिस्सा रख
तेरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है
गिरती है तो गिर जाए ये दीवार-ए-सुकूँ भी
दिन भर के झमेलों से बचा लाया था ख़ुद को
उस आँख न उस दिल से निकाले हुए हम हैं
दिल में सौ तीर तराज़ू हुए तब जा के खुला
कहा किस ने मुसलसल काम करने के लिए है
इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा
खुल कर तो वो मुझ से कभी मिलता ही नहीं है
जो ख़्वाब की दहलीज़ तलक भी नहीं आया
हंगाम-ए-शब-ओ-रोज़ में उलझा हुआ क्यूँ हूँ
फूल महकेंगे यूँही चाँद यूँही चमकेगा