जो ख़्वाब की दहलीज़ तलक भी नहीं आया
आज उस से मुलाक़ात की सूरत निकल आई
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तुम्हें मनाने का मुझ को ख़याल क्या आए
मैं अपनी प्यास में खोया रहा ख़बर न हुई
फिर याद उसे करने की फ़ुर्सत निकल आई
इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा
टूटे हुए लोग हैं सलामत
लफ़्ज़ों में हर इक रंज समोने का क़रीना
दिल अजनबी देस में लगा है
दिल की जागीर में मेरा भी कोई हिस्सा रख
तेरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है
खुल कर तो वो मुझ से कभी मिलता ही नहीं है
उस आँख न उस दिल से निकाले हुए हम हैं
दिन भर के झमेलों से बचा लाया था ख़ुद को