काम जो उम्र-ए-रवाँ का है उसे करने दे
मेरी आँखों में सदा तुझ को हसीं रहना है
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कहा किस ने मुसलसल काम करने के लिए है
हंगाम-ए-शब-ओ-रोज़ में उलझा हुआ क्यूँ हूँ
कौन हैं वो जिन्हें आफ़ाक़ की वुसअत कम है
तिरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है
दिल की जागीर में मेरा भी कोई हिस्सा रख
टूटे हुए लोग हैं सलामत
ज़ूमिंग
इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा
दिन भर के झमेलों से बचा लाया था ख़ुद को
तुम्हें मनाने का मुझ को ख़याल क्या आए
फिर याद उसे करने की फ़ुर्सत निकल आई