टूटे हुए लोग हैं सलामत
ये नक़्ल-ए-मकानी का मोजज़ा है
Gulzar
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फिर याद उसे करने की फ़ुर्सत निकल आई
दिल की जागीर में मेरा भी कोई हिस्सा रख
दिन भर के झमेलों से बचा लाया था ख़ुद को
इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा
खुल कर तो वो मुझ से कभी मिलता ही नहीं है
हंगाम-ए-शब-ओ-रोज़ में उलझा हुआ क्यूँ हूँ
तिरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है
ज़ूमिंग
ज़रा ज़रा ही सही आश्ना तो मैं भी हूँ
फूल महकेंगे यूँही चाँद यूँही चमकेगा
उस आँख न उस दिल से निकाले हुए हम हैं
काम जो उम्र-ए-रवाँ का है उसे करने दे