क़ैदी रिहा हुए थे पहन कर नए लिबास
हम तो क़फ़स से ओढ़ के ज़ंजीर चल पड़े
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बारिश कैसी जादूगर है
ओझल हुई नज़र से बे-बाल-ओ-पर गई है
बज़्म-ए-सुख़न को आप की दिल-गीर चल पड़े
झंकार है मौजों की बहते हुए पानी से
समेट ले गए सब रहमतें कहाँ मेहमान
दिल की मौजों की तड़प मेरी सदा में आए
नुमू की ख़ाक से उट्ठेगा फिर लहू मेरा
सीने के बीच 'साक़िब' ऐसा है मरना जीना
लकीर खींच के मुझ पे वो फिर मुझे देखे
घात