लकीर खींच के मुझ पे वो फिर मुझे देखे
निगार-ओ-नक़्श में चेहरा है हू-ब-हू मेरा
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क़ैदी रिहा हुए थे पहन कर नए लिबास
नुमू की ख़ाक से उट्ठेगा फिर लहू मेरा
ओझल हुई नज़र से बे-बाल-ओ-पर गई है
दिल की मौजों की तड़प मेरी सदा में आए
घात
बज़्म-ए-सुख़न को आप की दिल-गीर चल पड़े
किसे मजाल जो टोके मिरी उड़ानों को
समेट ले गए सब रहमतें कहाँ मेहमान
झंकार है मौजों की बहते हुए पानी से
ग़ज़ल में दर्द का जादू मुझी को होना था
सीने के बीच 'साक़िब' ऐसा है मरना जीना